Saturday, June 16, 2012

तू पूरा जादूगर है डाकिया

रंग-बिरंगे खतों को झोले से
निकाल कर देता है
तू पूरा जादूगर है डाकिया

तू जानता है तेरी
जरा सी लापरवाही
रिश्तों को तोड़ सकती है
मुद्दतों तक किसी का खत
तेरे झोले से नहीं निकलना
तू उसकी मौत
की आहट जान
लेता है डाकिया

मैं जानता हूं जबसे
मोबाइल चल गया है
बहुत से घरों में तेरा
आना-जाना छुट गया है
उस छुटी हुई जगह में
यादों की पुट्टी भरी दुई

डाकिया
तूने प्रेम पत्रों को
परिणय के बंधन तक
पहुँचते देखा है
तू बहुत सी प्रेम गाथाओं
का मौन गवाह है
ईक दूत के रुप में
तेरी भूमिका किसी
महानायक से कम तो नही
माना कि खुशखबरी लाने पर
किसी ने राजाओं की तरह
अपने गले का हार तुझे तोड़
कर नहीं दिया पर वो एहसान मंद हो
ये एहसान भी कम तो नहीं

डाकिया
शहर फैलते जा रहे है
झोले खाली ही रहते है
लोग खत से हाल चाल
नहीं लेते
बदलते वक्त की चाल से
डाकिया हार ना जाये
वो हारा तो कई जिंदगी
भी हार सकती है
तू नहीं बल्कि ईक पूरा
इतिहास हार जायेगा
वो भी उन चंद पूंजीपति
टेलीकाम कंपनियों से
जिनका खुद का कोई
इतिहास नहीं।

इस इतिहास को बचाने के लिए
कुछ खत लिखो
खत तुम्हें भी ऐतिहासिक
बनाते हैं
वो सम्बंधों के मौन गवाह है
खत किसी भी प्रलोभन में
अपने बयान नहीं बदलेगे
वो हवा से उड़के
तुम्हारे पैरो में गिर भी जाये
तो भी गर्व से भरे ही रहेंगे
उन्हें तुमनतमस्तकसमझने की
भूल मत करना !!

--आलोक तिवारी
रत्ना निवास, पाठक वार्ड, कटनी (मध्य प्रदेश)

2 comments:

Akshitaa (Pakhi) said...

Pyari si kavita..Badhai.

Unknown said...

Manbhavan Kavita..badhai Alok ji.