Tuesday, February 1, 2011

पोस्टमैन

(कविवर सोहन लाल द्विवेदी ने भी डाकिया को अपने शब्दों में ढाला है। मार्च 1957 में प्रकाशित उनकी कविता ‘पोस्टमैन‘ वाकई एक बेहतरीन कविता है। )

किस समय किसे दोगे क्या तुम
यह नहीं किसी को कभी ज्ञान
उत्सुकता में, उत्कंठा में
देखा करता जग महान
आ गई लाटरी निर्धन की
कैसी उसकी तकदीर फिरी
हो गया खड़ा वह उच्च भवन
तोरण, झंडी सुख की फहरी
यह भाग्य और दुर्भाग्य
सभी का फल लेकर तुम जाते
कोई रोता कोई हँसता
तुम पत्र बाँटते ही जाते
इस जग का सारा रहस्य
तुम थैले में प्रतिदिन किए बंद
आते रहते हो तुम पथ में
विधि के रचते से नए छंद।

8 comments:

Sunil Kumar said...

सुंदर कविता पढवाने के लिय धन्यवाद

डॉ. मनोज मिश्र said...

अच्छी लगी रचना,धन्यवाद.

Unknown said...

यह भाग्य और दुर्भाग्य
सभी का फल लेकर तुम जाते
कोई रोता कोई हँसता
तुम पत्र बाँटते ही जाते

...बेहतरीन कविता..सोहन लाल दिवेधी जी को पढना सुखद लगा.

Unknown said...

यह भाग्य और दुर्भाग्य
सभी का फल लेकर तुम जाते
कोई रोता कोई हँसता
तुम पत्र बाँटते ही जाते

...बेहतरीन कविता..सोहन लाल दिवेधी जी को पढना सुखद लगा.

डॉ. नूतन डिमरी गैरोला- नीति said...

बहुत सुन्दर पोस्ट ... कमाल की प्रस्तुति... सादर

डॉ. नूतन डिमरी गैरोला- नीति said...

kal aapki post charchamanch par hogi .. kripya vaha par aa kar apne vichaaro se jaroor kariyega ...
http://charchamanch.blogspot.com
11 feb ki post

डॉ. दलसिंगार यादव said...

पोस्टमैन अच्छा चित्रण। सरदी, गरमी, धूप बरसात से अप्रभावित समाज सेवी पोस्टमैन को कोई पोस्ट ऑफ़िस वाला ही समझ सकता है।

रंजना said...

वाह...

बहुत ही सुन्दर कविता...

आभार पढवाने के लिए..