Saturday, January 1, 2011

पहले ख़त की ख़ुशबू

खतों के प्रति दीवानगी सदियों से रही है. खतों का चलन भले ही कम हुआ हो, पर दीवानगी में कमी नहीं आई है. हसरत मोहानी ने यूँ ही नहीं लिखा था-लिक्खा था अपने हाथों से जो तुमने एक बार / अब तक हमारे पास है वो यादगार खत ।।....अपर्णा त्रिपाठी की इस कविता में वही भाव है, वही संवेदनाएं हैं, वही जज्बा है, वही दीवानगी है... तो आज नए साल के आगाज पर इस ख़ुशबू को महसूस करते हैं...

आज भी तेरा पहला खत
मेरी इतिहास की किताब में हैं
उसका रंग गुलाबी से पीला हो गया
मगर खुशबू अब भी पन्नो में है

उसके हर एक शब्द हमारी
प्रेम कहानी बयां करते है
और तनहाई में मुझे
बीते समय में ले चलते हैं

वो खत मेरी जिन्दगी का
हिस्सा नही ,जिन्दगी है
हर दिन पढने की उसे
बढती जाती तृष्णगी है.

अपर्णा त्रिपाठी "पलाश"

5 comments:

डॉ. मनोज मिश्र said...

बहुत खूबसूरत रचना.
नववर्ष शुभ हो.

जयकृष्ण राय तुषार said...

वो खत मेरी जिन्दगी का
हिस्सा नही ,जिन्दगी है
हर दिन पढने की उसे
बढती जाती तृष्णगी है.

...Khubsurat Panktiyan..Badhai.

जयकृष्ण राय तुषार said...

नव वर्ष 2011 की हार्दिक शुभकामनाएं!

Akshitaa (Pakhi) said...

खुशबू तो अच्छी है, पर दिख नहीं रही...

संजय भास्‍कर said...

वो खत मेरी जिन्दगी का
हिस्सा नही ,जिन्दगी है
हर दिन पढने की उसे
बढती जाती तृष्णगी है.

इन पंक्तियों ने दिल छू लिया... बहुत सुंदर ....रचना....