Thursday, December 17, 2009

डाकिया डाक लाया -1

...कहता हूं दौड़ दौड़ के कासिद से राह में
डाक आमफहम हिन्दोस्तानी ज़बान का एक ऐसा लफ्ज है जिसके साथ समाज के हर वर्ग की भावनाएं जुड़ी हुई हैं। डाक एक संवाद है अपनों से जो दूर बसे हैं। सुख,दुख के संवाद का जरिया। डाक यानी चिट्ठी-पत्री, पोस्ट। कहां से आया ये लफ्ज ? दरअसल यह शब्द संचार माध्यम की अत्यंत प्राचीन सरकारी व्यवस्था से भी जुड़ा हुआ है।

चिट्ठी-पत्री यानी डाक शब्द के साथ जो बात सबसे महत्वपूर्ण है वह है इसे पाने की भी जल्दी रहती है और भेजने की भी। एक शायर लिखते हैं - आती है बात बात मुझे याद बार बार / कहता हूं दौड़ दौड़ के कासिद से राह में । और दूसरी तरफ - दे भी जवाबे ख़त कि न दे , क्या ख़बर मुझे / क्यों अपने साथ ले न गया , नामाबर मुझे । मतलब यही कि शीघ्रता का जो भाव डाक के साथ जुड़ा है उसी में है इसके जन्म का मूल भी।

संस्कृत का एक शब्द है द्रा जिसके मायने हैं दौड़ना, शीघ्रता करना , उड़ना आदि। इसी से बना है द्राक् जिसका मतलब होता है जल्दी से , शीघ्रता से , तुरन्त, तत्काल, उसी समय वगैरह वगैरह। इसे ही डाक का उद्गम माना गया है। गौर करें कि प्राचीनकाल की संचारप्रणाली में जो अच्छे धावकों को ही संदेशवाहक का काम सौंपा जाता था। ये रिले धावकों की तरह निरंतर एक स्थान से दूसरे स्थान तक संदेश पहुंचाने तक भागते रहते थे। थोड़ी थोड़ी दूरी पर इन्हें बदल दिया जाता था। ये प्रणाली बड़ी कारगर थी और दुनिया के हर हिस्से में यही तरीका था संदेश पहुंचाने का।

अंग्रेजी दौर में फली-फूली
अंग्रेजी शासन व्यवस्था में यह शब्द खूब इस्तेमाल हुआ है। इसका रिश्ता जहाज के ठहरने के स्थान से भी जोड़ा जाता है जिसे डॉक कहते हैं। लंदन से राजशाही के कामकाज की चिट्ठियां भारतीय गवर्नर के नाम जहाजों से ही आती थीं। डॉक शब्द बना है पोस्टजर्मनिक के डोको से जिसका मतलब बंडल भी होता है।

भारत के लंबे चौडे शासनतंत्र को सुचारू रूप से चलाने में अंग्रेजों की चाक चौबंद डाक प्रणाली का बड़ा योगदान रहा। डाकखाना, डाकबंगला, डाकिया, डाकघर जैसे शब्द यही ज़ाहिर करते हैं। पुराने ज़माने के धावकों की जगह कालांतर में घुड़सवार संदेशवाहकों ने ले ली। अंग्रेजों ने बाकायदा इसके लिए घोड़ागाड़ियां चलवाईं जिन्हें डाकगाड़ी कहा जाता था। आज इन्हीं डाकगाड़ियों की जगह लालरंग की मोटरों ने ले ली है जिन्हें डाक विभाग चलाता है।
साभार- शब्दों का सफर

6 comments:

Randhir Singh Suman said...

nice

Unknown said...

Dak shabd ke udbhav ke bare men sargarbhit jankari....Sadhuvad apko bhi & Ajit ji ko bhi.

Amit Kumar Yadav said...

वाह ! युवाओं के लिए नई जानकारी क्योंकि ऐसी जानकारी से वे अनभिज्ञ ही रहते हैं.

Unknown said...
This comment has been removed by the author.
हिंदी साहित्य संसार : Hindi Literature World said...

भारत के लंबे चौडे शासनतंत्र को सुचारू रूप से चलाने में अंग्रेजों की चाक चौबंद डाक प्रणाली का बड़ा योगदान रहा। डाकखाना, डाकबंगला, डाकिया, डाकघर जैसे शब्द यही ज़ाहिर करते हैं।
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बिना डाक के आज भी दुनिया सूनी है.

Bhanwar Singh said...

कठिन शब्दों की सरल व्याख्या...फिर से पढना पड़ेगा.