Saturday, August 8, 2009

डाकिया


छोड़ दिया है उसने 
लोगों के जज्बातों को सुनना 
 लम्बी-लम्बी सीढियाँ चढ़ने के बाद 
पत्र लेकर झट से बंद कर दिए गए 
दरवाजों की आवाज 
चोट करती है उसके दिल पर !

 चाहता तो है वह भी 
कोई खुशी के दो पल उससे बाँटे 
किसी का सुख-दुःख वो बाँटे 
पर उन्हें अपने से ही फुर्सत कहाँ? 

 समझ रखा है उन्होंने
उसे डाक ढोने वाला हरकारा 
नहीं चाहते वे उसे बताना 
चिट्ठियों में छुपे गम और खुशियों के राज !

 फिर वो परवाह क्यों करे? 
वह भी उन्हें कागज समझ 
बिखेर आता है सीढ़ियों पर 
 इन कागजी जज्बातों में से 
अब लोग उतरकर चुनते हैं 
अपनी-अपनी खुशियों और गम के हिस्से 
और कैद हो जाते हैं अपने में !!

8 comments:

Akanksha Yadav said...

Nice Poem...Congts.

अर्चना तिवारी said...

छोड़ दिया है उसने
लोगों के जज्बातों को सुनना

लम्बी-लम्बी सीढियाँ चढ़ने के बाद
पत्र लेकर
झट से बंद कर
दिए गए
दरवाजों की आवाज
चोट करती है उसके दिल पर



सचमुच दिल को चोट तो पहुँचती ही होगी...सुंदर भाव....

ओम आर्य said...

achchhi dak laye hain aap dakiya babu....abhaar.

विनोद कुमार पांडेय said...

डाकिया बाबू जी,
सच्चाई बयाँ करती अत्यन्त भावपूर्ण कविता
लेख और कविता दोनो मे आपका जवाब नही..

Bhanwar Singh said...

Satik chitran...badhai.

संजय भास्‍कर said...

सचमुच दिल को चोट तो पहुँचती ही होगी...सुंदर भाव....

lakshmi said...

veeeeeeeery nnnice

lakshmi said...

superb