Saturday, July 18, 2009

डाकघर सद्भाव तथा शुभकामनाओं का प्रतीक- टैगोर

(डाकघर पर 13 अक्टूबर 2008 को 5 रूपये का स्मारक डाक टिकट जारी किया गया। प्रतिभूति मुद्रणालय हैदराबाद में वेट-आफसेट प्रक्रिया द्वारा आठ लाख की संख्या में मुद्रित इस डाक टिकट के साथ जारी विवरणिका में अंकित शब्दों को यहां साभार हूबहू स्थान दिया जा रहा है)

आज हम टेलीफोन, मोबाइल फोन, ई-मेल जैसे इलेक्ट्रानिक उपकरणों के इतने अभ्यस्त हो गये हैं कि हमने इन्हें सदा के लिए अपना मान लिया है। इन आविष्कारिक चमत्कारों के लिए हजारो समर्पित कारीगरों ने उत्साहपूर्वक कार्य किया है जिसके परिणामस्वरूप ये उपकरण अवसंरचनाएं और संस्थान आज मौजूद हैं। आज ये संस्थान हमारे हैं जिन्हें हमें सहेज कर रखना है और आगे ले जाना है। डाकघर भी एक ऐसा संस्थान है जोकि अन्य सरकारी विभागों की तुलना में, हमारी संवेदनाओं से जुड़ा हुआ है। यह संदेशों का आदान-प्रदान करता है, लोगों को जोड़ने में मदद करता है तथा पत्र के माध्यम से लोगों के मध्य संप्रेषण करता है।

जब तक हम इसके बारे में सोचते हैं तो पत्र के नाम से ही रोमांच उत्पन्न हो जाता है। कितनी बेसब्री से पत्र की प्रतीक्षा की जाती है। हममे से कितनों ने रविन्द्र नाथ टैगोर के नाटक ‘‘डाकघर‘‘ के छोटे से लड़के की तरह महसूस किया होगा जो गांव में नये खुले डाकघर के माध्यम से राजा से मिलने वाले पत्र की उत्सुकता से प्रतीक्षा करता है।

डाकघर को दुनिया में संचार का माध्यम माना गया है। डाकिया प्राकृतिक आपदाओं, जंगली जानवरों, भूभागी कठिनाइयों तथा डाकुओं आदि की बाधाओं को पार करते हुए अपने कर्तव्य का पालन करता है। ‘‘डाकघर‘‘ नाटक चैकीदार द्वारा छोटे लड़के को इस तथ्य को कितनी अच्छी तरह बताया गया हैः-

‘‘हा...हा....डाकिया, यकीनन बरसात हो या लू, अमीर हो या गरीब, सबको घर-घर जाकर चिट्ठी बांटना उसका काम है यह बहुत बड़ी बात है।‘‘

आज डाकघर न केवल पत्र वितरित करता है बल्कि अपने व्यापक नेटवर्क के माध्यम से विभिन्न प्रकार की सेवाएं भी प्रदान करता है। वित्तीय लेनदेनों का संवहन करने की क्षमता रखता है तथा स्थानीय इलाके की जानकारी होने के कारण यह जनता को विभिन्न सेवायें उपलब्ध करवाने के लिए दक्ष एवं लागत प्रभावी भी सुलभ कराता है। भारतीय डाक आज पारम्परिकता और आधुनिकता दोनों की झलक प्रस्तुत करता है। डाकघर निरंतरता एवं परिवर्तन की पहचान बन गया है।

गुरुदेव रविन्द्र नाथ टैगोर ने अपने नाटक ‘‘डाकघर‘‘ के माध्यम से डाकघर को सद्भाव, शुभकामनाओं का प्रतीक तथा राजा का प्रजा के प्रति वात्सल्य दिखाया है।

4 comments:

डॉ. मनोज मिश्र said...

बढिया जानकारी.

Akanksha Yadav said...

भारतीय डाक आज पारम्परिकता और आधुनिकता दोनों की झलक प्रस्तुत करता है। डाकघर निरंतरता एवं परिवर्तन की पहचान बन गया है.....Ekdam sahi bat !!

हिंदी साहित्य संसार : Hindi Literature World said...

Nice article on Post Office.

संजय भास्‍कर said...

मीर हो या गरीब, सबको घर-घर जाकर चिट्ठी बांटना उसका काम है यह बहुत बड़ी बात है।‘‘